उत्तराखंड राज्य निर्माण के 23 साल बाद आज भी ऐसे हैं हालात

देहरादून। उत्तराखंड अपनी 23 वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है। इन 23 सालों में आज उत्तराखंड कहां खड़ा है? यह प्रश्न आज हम सबके सामने हैं। भविष्य में इसकी दिशा कैसी होनी चाहिए, उस पर मनन का भी यह समय है। उत्तराखंड बनने के पीछे सबसे बड़ी मांग यही थी कि यह पहाड़ी राज्य है और इसकी पारिस्थितिकी, संस्कृति व संसाधन देश के अन्य जगहों से अलग है। साथ में सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी रही कि उत्तराखंड की इकोलॉजी देश-दुनिया को पानी, हवा, मिट्टी व जंगल का सबसे बड़ी दाता है।

ऐसे में इसके संरक्षण के लिए अति आवश्यक यह भी हो जाता है कि यहां के लोग किसी भी रूप में यहां की आर्थिकी और पारिस्थितिकी से जुड़े रहें। ताकि, निरंतरता से हिमालय के इस हिस्से की सेवा देश को मिलती रहे। इस राज्य की सबसे बड़ी कमी थी कि पहले के 20 सालों में यहां की राजनीतिक अस्थिरता ने इसे भटकाए रखा। इस अवधि में उत्तराखंड की सबसे ज्यादा चर्चा राजनीतिक अस्थिरता को लेकर हुई। यही राज्य के निम्न विकास का भी कारण भी बना। दोनों ही मुख्य राजनीतिक दलों ने बारी-बारी से राज्य का नेतृत्व किया।

आपसी और भीतरी नेतृत्व की लड़ाई के चक्कर में गंभीर तरीके से उत्तराखंड के खाके की तैयारी भटक गई। अलबत्ता पिछले दो-चार वर्षों से कुछ स्थिरता आने के बाद गंभीरता दिखी है। आज हम कहीं एक ऐसे विकास मॉडल की तरफ जा रहे, जो विज्ञान आधारित तो है ही, पर इसमें पारिस्थितिकी की भी भागीदारी है।

चिंतन करेंगे तो शायद तब ही हम एक आदर्श राज्य बन पाएंगे

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उत्तराखंड को अब एक विज्ञान आधारित मॉडल राज्य बनाने के लिए कोशिशें भी दिखाई देती है। इन सबके बीच आज भी कहीं कुछ सवाल अवश्य खड़े हैं। उत्तराखंड की मांग के पीछे इनके गांव स्थानीय लोगों और पहाड़ी हिस्से का कहीं विकास की मुख्यधारा से बहुत दूर रह जाना था।

अगर आज इस पहलू का आकलन करें तो शायद उस ओर हम अभी उतने गंभीरता से आगे नहीं बढ़ पाए, जिसकी कि आज बड़ी आवश्यकता है। ऐसा नहीं कि इस दिशा में प्रयास नहीं हुए। सरकारों ने और गैर सरकारी स्तर पर भी कई प्रयोग हुए है और इन्हीं से राज्य का भविष्य संवर सकता है, लेकिन बड़ी आवश्यकता है इन प्रयोगों के व्यापक होने की है।
आज यह आवश्यक हो जाता है कि हम उन तमाम पहलुओं को जो 23 वर्षों में किन्हीं कारणों से नकार दिए गए, उन्हें मुख्यधारा में लाकर नई सोच बनाएं। अगर उन पर चिंतन करेंगे तो शायद तब ही हम एक आदर्श राज्य बन पाएंगे। यह भी तय है कि यह राज्य अन्य हिमालयी राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा चर्चित राज्य है, क्योंकि यहां बहुत से जन आंदोलनों ने जन्म लिया है।
यह बन  सकते हैं बड़े अवसर

यहां से गंगोत्री, यमुनोत्री, बदरीनाथ, केदारनाथ जैसे धाम देश की आस्था के प्रतीक भी हैं, इसलिए यह एक बड़ा अवसर भी बन सकता है कि हम हिमालयी राज्यों का आदर्श तो बनें। साथ में एक ऐसा राज्य बने जो आर्थिक और पारिस्थितिकी के समन्वय से चलता हो। आज सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि राज्य को युवाओं के हिस्से में ज्यादा लाना चाहिए।

वो राजनीतिक क्षेत्र हो या आर्थिक और सामाजिक, क्योंकि युवा ही हैं जो नई सोच के साथ राज्य को एक दिशा दे सकते हैं। हम यह भी नहीं कह सकते कि 23 सालों में कुछ नहीं हुआ, लेकिन यह जरूर कहना चाहेंगे कि जो कुछ होना चाहिए, उसमें अभी हम कहीं पीछे हैं। मैं समझता हूं कि सरकार व राजनीतिक दलों को खुद 23 सालों का ईमानदारी से आकलन करना चाहिए, ताकि वे राज्य का बेहतर भविष्य बना सकें। 

-अनिल जोशी लेखक : मशहूर पर्यावरणविद और अग्रणीय सामाजिक कार्यकर्ता हैं

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