मसूरी गोलीकांड की बरसी पर छलका आंदोलनकारियों का दर्द, कही ये बात

देहरादून। मसूरी गोलीकांड की 29वीं बरसी पर शहीद हुए राज्य आंदोलनकारियों को याद कर रहा है। 29 साल पहले दो सितंबर 1994 को हुए इस घटना में पुलिस की गोली से छह राज्य आंदोलनकारियों की मौत हो गई थी। इस दर्दनाक घटना को याद करके एक बार फिर आंदोलनकारियों और शहीदों के परिजनों का दर्द छलक उठा।

उस दिन की घटना को याद करते हुए शहीद मदन मोहन ममगाईं की पत्नी शांति ममगाईं ने बताया, दो सितंबर 1994 को उनके बड़े बेटे मंजुल ममगाईं का जन्मदिन था, लेकिन उनके पति ने उनसे कहा कि झूलाघर के पास चल रहे राज्य निर्माण आंदोलन में शामिल होने जा रहे हैं, वहां से लौटकर जन्मदिन मनाएंगे, लेकिन जानकारी मिली कि आंदोलन स्थल पर पुलिस ने गोली चला दी। इसमें मदन मोहन ममगाईं शहीद हो गए।

शांति ममगाईं ने कहा, उनके पति और अन्य आंदोलनकारियों ने राज्य की मांग को लेकर शहादत दी। राज्य बना भी, लेकिन जिन अन्य मुद्दों को आंदोलन में उठाया गया था, उनका समाधान आज तक नहीं हो सका। पहाड़ से लगातार पलायन जारी है, बेरोजगारी बढ़ रही है, बाहर के लोग प्रदेश में जमीनें खरीद रहे हैं। इसके कारण भविष्य में उत्तराखंड के लोगों की पहचान खतरे में पड़ जाएगी। शांति ने आगे कहा, सरकार को राज्य के जनहित के मुद्दों पर ठोस पहल करनी चाहिए।

वहीं, गोलीकांड में शहीद राय सिंह बंगारी के बेटे रविराज बंगारी ने बताया कि 29 साल पहले आज के दिन हमारे परिवार को जो दर्द मिला, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। रविराज ने कहा, राज्य निर्माण के लिए मेरे पिता ने प्राणों का बलिदान दिया। अब हमारी जिम्मेदारी है कि हम राज्य की उन्नति के लिए मिलकर काम करें।

महानगरों में भटक रहे पहाड़ के युवा

राज्य आंदोलनकारी देवी प्रसाद गोदियाल ने बताया कि अलग राज्य की मांग को लेकर उन्होंने वह जेल गए, पुलिस की लाठियां खाईं, उत्पीड़न सहा, लेकिन पीछे नहीं हटे। उन्होंने कहा, हमें उम्मीद थी कि अलग राज्य बनेगा तो हमारा जल, जंगल और जमीन बचेगी। लोगों को रोजगार मिलेगा, लेकिन बेरोजगारी और पलायन की समस्या जस की तस है। वरिष्ठ आंदोलनकारी जयप्रकाश उत्तराखंडी कहते हैं कि अलग राज्य बने लंबा समय हो गया, लेकिन राज्य की सरकारों ने आज तक पलायन और बेरोजगारी से निपटने के लिए कोई ठोस प्लान नही बनाया। जिसके चलते पहाड़ के युवा महानगरों में भटक रहे हैं।
क्या हुआ था उस दिन
अलग राज्य और खटीमा गोलीकांड के विरोध में आंदोलनकारी दो सितंबर 1994 को लंढौर और गांधी चौक से शांतिप्रिय तरीके से जुलूस निकाल रहे थे। दोनों गुट झूलाघर के पास पहुंचे ही थे, इसी दौरान गनहिल की पहाड़ी से किसी ने पत्थरबाजी कर दी। आंदोलनकारी कुछ समझ पाते कि पुलिस ने उनपर फायरिंग कर दी। इस गोलीकांड में आंदोलनकारी बेलमती चौहान, हंसा धनाई, राय सिंह बंगारी, मदन मोहन ममगाईं, बलवीर नेगी, धनपत सहित पुलिस अधिकारी उमाकांत त्रिपाठी शहीद हो गए।

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