जोशीमठ में अभी भी नहीं भरी दरारें, जर्जर भवन दरकने का डर
जर्जर भवन जोशीमठ के पहाड़ पर भार बने हैं। ड्रेनेज प्लान पर काम नहीं हुआ है। ऐसे में मानसून में फिर खतरा बढ़ेगा।

देहरादून। जोशीमठ में अभी भी दरारें भरी नहीं हैं, ड्रेनेज सिस्टम दुरुस्त नहीं होने से बारिश का पानी पहाड़ के भीतर समाने का खतरा बना है। इसके अलावा 14 पॉकेट ऐसे हैं, जहां खड़े 800 से अधिक जर्जर भवन पहाड़ पर भार बने हैं। साल भर गुजर जाने के बाद फिर से मानसून दस्तक देगा, लेकिन अभी तक पहाड़ की स्थिरता के लिए ठोस कदम नहीं उठाए जा सके हैं। जबकि वैज्ञानिकों की रिपोर्ट ने इन सभी कामों को जल्द से जल्द शुरू कराए जाने की सिफारिशें की थीं।
बता दें कि भूधंसाव के बाद जांच में पहाड़ के भीतर करीब 40 दरारें देखी गई थीं। साल 2023 में जनवरी की कड़कड़ाती ठंड में अचानक जोशीमठ के पहाड़ों के भीतर से पानी का फव्वारा फूटने के साथ ही सैकड़ों भवनों की दीवारों और फर्श पर दरारें आ गई। किसी तरह मकान खाली कराए गए। पहाड़ के लिए खतरा बने होटलों को ढहाकर मलबा हटाया गया।
विभिन्न तकनीकी संस्थानों के वैज्ञानिकों की टीम ने जांच के बाद रिपोर्ट नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी को सौंपी। जिसमें पहाड़ की स्थिरता के लिए जल्द से जल्द बुनियादी काम शुरू करने की सिफारिश की गई। सीबीआरआई रुड़की की टीम की ओर से सौंपी गई रिपोर्ट में बताया गया है कि जांच के दौरान 300 मिलीमीटर तक चौड़ी और 3 से 4 मीटर तक गहराई की करीब 40 दरारें पाई गई और इन्हीं दरारों के आसपास अधिकांश भवनों को नुकसान हुआ है।
करीब 700 भवनों की मरम्मत की जानी है
रिपोर्ट के अनुसार अतिसंवेदनशील भवनों में दरारों की चौड़ाई 5 मिलीमीटर से अधिक थी। जबकि मध्यम रूप से संवेदनशील भवनों में आई दरारें दो से पांच मिलीमीटर तक चौड़ी थी। भूधंसाव के दौरान जोशीमठ में 2300 से अधिक भवनों का सर्वे करने वाले सीबीआरआई वैज्ञानिक डॉ. अजय चौरसिया ने बताया कि जोशीमठ में 14 पॉकेट ऐसी हैं, जहां पर बने करीब 800 जर्जर भवन रेड श्रेणी में हैं। जिन्हें ध्वस्त कर मलबा पूरी तरह साफ करना है। ताकि पहाड़ के ऊपर का भार कम हो सके। यहां के लोगों का पुनर्वास अन्य जगहों पर किया जाना है। इसके अलावा करीब 700 भवनों की मरम्मत की जानी है।